First train In India और इसके पहले दिन की कहानी
क्या आप जानते हैं कि मुंबई की पहली लोकल जब चली तब का नजारा कैसा था? आइए जानते हैं इस लेख के माध्यम से।
लोगों के लिए चमत्कार
16 अप्रैल 1853 को मुंबई में पहली बार दौड़ने वाली रेल गाड़ी की चर्चा गली – गली मे थी
क्योंकि आज वे एक चमत्कार देखने वाले थे। अब तक लोगों ने गाड़ी को बैल या घोड़े के माध्यम से
खींचते हुए देखा था पर आज के दिन वे बिना बैल या घोड़े के गाड़ी को दौड़ते हुए देखने वाले थे।
पहली रेल यात्रा का आनंद
आज ही के दिन बड़े-बड़े अंग्रेज अधिकारियों के बच्चे बिना बैल की गाड़ी को हाँकने वाले थे
और इस दिन बड़े-बड़े अधिकारी उपस्थित थे। 14 डिब्बे और तीन महाकाय इंजन के साथ
पहले रेलवे की यात्रा का आनंद 500 लोगों ने उठाया। अपनी श्रेणी के अनुसार लोग गाड़ी में बैठे थे।
इस अवसर पर कई VIP लोग उपस्थित थे जिसमें नाना शंकर सेठ प्रमुख थे। इंग्लैंड में बने इंजन ने
भारत की पहली रेलवे खींची । इसकी सहायता के लिए सिंध, सुल्तान और साहिब यह अन्य तीन इंजन
भी लिए थे। सन 1830 में विश्व की पहली रेलवे की शुरुआत हुई थी।
First train In India और इसके पहले दिन की कहानी-इतिहास रचा गया
इसके बाद मात्र 14 वर्ष में भारत में रेलवे का पदार्पण हुआ।
और 16 अप्रैल 1853 की दोपहर 3 बजकर 30 मिनट पर इतिहास रचा गया। तोपों की सलामी, सीटी और
हरी झंडी के बीच राक्षसी आकार के तीन इंजनों की कर्णभेदी ध्वनि से सारा वातावरण गुंजायमान हो उठा।
इसके इंजन से निकलने वाले विशाल धुएँ के झुंड विकराल बादलों से प्रतीत हो रहे थे। काले पोशाक पहने इंजन
के पेट में बैठे खलासी फावड़े से कोयला आग में झोंक रहे थे। उन तीन राक्षसी स्वरूप इंजनों ने चमत्कार
रचा थाऔर यह गाड़ी देखते ही देखते चलने लगी।
लोगों में यह चर्चा का विषय
लोगों में यह चर्चा होने लगी कि पौराणिक काल में हम
अद्भुत चमत्कारों की बातें केवल सुनते थे पर आज कलयुग में अंग्रेजों ने इसे प्रत्यक्ष में प्रमाणित कर दिखाया है।
अंग्रेजों का राजा देवों का अवतार है। ऐसी लोगों में धारणा आम हो गई।
तत्काल लोगों की मनोदशा
परिणाम स्वरूप इस अद्भुत दृश्य को देखकर लोगों ने हाथ जोड़कर गाड़ी को दंडवत प्रणाम किया।
गाड़ी की गति, सीटी की आवाज के कारण लोग भयचकित तो थे ही पर गाय, बैल भी सहम गए ।
कुत्ते इसे देख पागलों जैसे भौंकने लगे ।
किसी भी प्रकार के बैल या घोड़े जैसे जानवर के बिना चलने वाली नहीं बल्कि दौड़ने वाली गाड़ी
लोगों के लिए आश्चर्य का एक अद्भुत नजारा उपस्थित कर रही थी।
उनके लिए यह किसी चमत्कार से कम न था।
First train In India और इसके पहले दिन की कहानी – स्वागत
बोरी बंदर से थाने के बीच की 11 मील यानी 34 किलोमीटर की दूरी को इस गाड़ी ने एक घंटे
12 मिनट में तय किया। इस श्रृंखला में रास्ते में पड़ने वाले गाँव के लोग इसके स्वागत के लिए
तैयार खड़े थे ।गाड़ी भायखला स्टेशन पर जब आई तब इसके स्वागत में बड़ी भीड़ उमड़ पड़ी ।
लोग छतों पर ,पहाड़ों पर खड़े होकर इस चमत्कार को नमस्कार कर रहे थे।
शाम 4:58 पर यह गाड़ी ठाणे स्टेशन पहुॅची । तब थाने स्टेशन काफी छोटा हुआ करता था।
जो खपरैल से ढका हुआ था। सभी मेहमानों का शाही अंदाज में स्वागत किया गया । शाम 6:30 बजे
ठाणे स्टेशन से निकलने के बाद 55 मिनट में यह पुनः बोरी बंदर स्टेशन पर पहुंच गई।
इस प्रकार इस गाड़ी की पहली गाड़ी की यात्रा का अनुभव चमत्कार से काम न था।
किसी भी चमत्कार को दैवत्व प्रदान करने वाले तत्काल भारतीयों ने इस गाड़ी का नामकरण
चक्या म्हसोबा अर्थात चक्के वाली भैंस के रूप में किया।
श्रेणी के अनुसार रेल के डिब्बों की रचना
पहली रेलगाड़ी में 14 डिब्बे थे। तृतीय श्रेणी के डिब्बे असुविधा से भरपूर थे।
जिसमें बैठने के लिए बेंच ही नहीं थे। यात्रियों को खड़े-खड़े यात्रा करनी पड़ी रही थी जिसमें खिड़कियां
इतनी ऊंचाई पर थी कि खड़े होकर यात्रा करने के बाद भी यात्री खिड़की के बाहर का नजारा देख
नहीं पाते थे जिस कारण स्वाभाविक रूप से इस श्रेणी के डिब्बे को बकरा गाड़ी भी संबोधित किया जाने लगा।
अंग्रेजों की सोच को झुठलाता सफ़र
18वीं में शताब्दी में लोग जात-पात, अंधश्रद्धा और अज्ञान के जाल के बवंडर में फंसे हुए थे।
अंग्रेजों की यह सोच थी कि भूखे नंगो के रूप में पहचाने जाने वाले भारतीय रेलवे का टिकट खरीद कर
यात्रा नहीं कर पाएँगे साथ ही साथ अस्पृश्यों की छाया भी शरीर पर ना पड़े ऐसे भारतीय ऊँच – नीच का
भेदभाव भूल कर एकत्र रूप से यात्रा भी नही कर पाएँगे । पर उन्हे क्या पता था कि भविष्य में
यही रेलगाड़ी मुंबई की पहचान और यहाँ की जीवन रेखा बन जाएगी ।
मुंबई की लाइफ लाइन लोकल मेरी जान
उनके विचार और तर्क को ठेंगा दिखाते हुए तत्कालीन मुंबई – थाने के लोगों ने रेलवे की यात्रा को अभूतपूर्व प्रतिक्रिया प्रदान की ।थाने मुंबई इस मार्ग पर आज पौने एक करोड़ से भी ज्यादा यात्री यात्रा कर रहे हैं ।रेलवे ही आज मुंबई की जीवन रेखा साबित हुई है ।
सबसे बड़ा योगदान नाना शंकर सेठ
लेकिन 1853 में रेलवे आरंभ करने में सबसे बड़ा योगदान नाना शंकर सेठ का था। रेलगाड़ी शुरू होने पर मुंबई का वैभव, यातायात व व्यापार बढ़ जाएगा जिस कारण सरकार को भी फायदा होगा ऐसी नाना की दूरदर्शी सोच थी। 16 अप्रैल को लगभग 25 वीआईपी लोगों ने इस गाड़ी में यात्रा की जिसमें नाना शंकर सेठ का भी समावेश था ।रेलवे शुरू करते समय नाना शंकर सेठ के अनमोल सहयोग के कारण उन्हें प्रथम श्रेणी का सोने का पास देकर सम्मानित किया गया।
भारत में 16 अप्रैल 1953 के दिन बोरी बंदर से थाने के दरमियान पहले प्रवासी रेलवे गाड़ी दौड़ी तब से लेकर भारतीय रेलवे की यात्रा का अनवरत क्रम जारी है । पिछले 160 वर्षों में रेलवे की परिधि का विस्तार इतना बढ़ गया है कि आज यह दंतकथा का विषय बन गई है। भारतीय रेलवे का नेटवर्क चीन के बाद एशिया का दूसरे नंबर का नेटवर्क बन चुका है।
तो ऐसी थी First train In India और इसके पहले दिन की कहानी ।