क्या आप जानते हैं सरस्वती पूजा और वसंत पंचमी का क्या संबंध है?
माता सरस्वती को बुद्धि और मनोकामना पूर्ति की देवी माना जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि
माता सरस्वती और वसंत पंचमी का आपस में क्या संबंध है?
छः ऋतुओं में सबसे प्रिय बसंत ऋतु में फूलों पर बहार आ जाती है,अमराई में मंजरी आ जाती है,
सरसो के फूल भी अपनी पीली छटा प्रकृति में बिखेरती है। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के पांचवे दिन
वसंत पंचमी पंचमी का उत्सव पीले रंग के वस्त्र पहन कर मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रकृति को सुंदरता
इसी दिन प्राप्त हुई थी और यह सुंदरता साक्षात माता सरस्वती ने इसी दिन प्रकट होकर प्रदान की थी।
तो इस प्रकार बसंत पंचमी माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
स्वरूप
श्वेत वर्ण, हाथ में वीणा, कमल पर आसन इस स्वरूप में इनकी आराधना सामान्य तौर पर होती है।
विशेष महत्व
बंगाल में इस दिन विशेष रूप से माता सरस्वती की मूर्ति की स्थापना कर ब्राह्मणों को घर पर आमंत्रित कर विधि विधान के साथ सरस्वती पूजा कराई जाती है।इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। पूजा में पीली मिठाई, पीली खीर, पीले फूल और पीले वस्त्र माता सरस्वती को चढ़ाते हैं। इसी दिन पहली बार छोटे बच्चे के हाथ में लेखनी ( पेंसिल, कलम) थमाकर उसके बौद्धिक विकास की कामना की जाती है।
भारत के अन्य क्षेत्रों में भी विद्यार्थी गण मुख्य रूप से अपने पुस्तकों और कलम की पूजा करते हुए माता सरस्वती से विद्या का वरदान मांगते हैं। संगीतज्ञ अपने वाद्य यात्रों की पूजा इस दिन अवश्य करते हैं।
किसी भी कला में पारंगत होने हेतु माता सरस्वती की शरण में जाना श्रेयस्कर होता है।
शारदा, वागेश्वरी, भारती, ज्ञानदा, हंसवाहिनी, महाश्वेता, वाग्देवी आदि नामों से भी इन्हे जाना जाता है।